रविवार, 30 सितंबर 2012

आओ कौवों का स्वागत करते हैं ....

श्रद्धासमन्वितैर्दत्तं पितृभ्यो नामगोत्रतः।
यदाहारास्तु ते जातास्तदाहारत्वमेति तत्।।
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आओ कौवों का स्वागत करते हैं ....
लेकिन कौवे ही क्यों ..
क्यों की वो भी तो "दुर्लक्षित" होते हैं
ज्यादा तर बूढ़े माँ-बाप की तरह , इस कौवे की आँख में झाक कर देखे तो पता लगे की कितनी मायूसियत भरी होती हैं उन नजरो में !!
दिव्य लोकवासी पितरों के पुनीत आशीर्वाद से आपके कुल में दिव्य आत्माएँ अवतरित हो सकती हैं।
जिन्होंने जीवन भर खून-पसीना एक करके इतनी साधन-सामग्री व संस्कार देकर आपको सुयोग्य बनाया
उनके प्रति सामाजिक कर्त्तव्य-पालन अथवा उन पूर्वजों की प्रसन्नता,
ईश्वर की प्रसन्नता अथवा अपने हृदय की शुद्धि ( !! इतना सब एक ही " कौवा भोज में ? )
के लिए सकाम व निष्काम भाव से किया जाने वाला यह श्राद्धकर्म किसी " ढोंग " से बिलकुल कम नहीं हैं
बड़ा चालाक हो गया हैं इन्सान ....
कौवों को साल में से एक बार "खीर-पूरी" का भोज देकर
"शोर्टकट" में "स्वर्ग" पाने का आसान तरीका हैं ये ..